
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सतर्कता के बाद पीएफआई के दो सदस्यों का लखनऊ से पकड़ा जाना बड़ा सवाल जन्म देता है।
जेडब्ल्यूएस ने परिचर्चा के दौरान इस बात की भी चर्चा की कहां की देश में सभी एक साथ मिलजुल कर रहना चाहते हैं लेकिन कुछ अराजक और शरारती तत्व माहौल बिगाड़ने का काम करते हैं ज्यादातर राजनैतिक गलियारों में जाति धर्म संप्रदाय की बात होती है जबकि वास्तविक जीवन में व्यक्ति रोजगार स्वास्थ हर मकान रोटी कपड़ा रिश्तेदारी में ही उलझा रहता है।
भारतीय जांच एजेंसियों की मानें तो उनके मुताबिक सिमी आजादी के बाद यह धर्म आधारित पहला संगठन था जो कि भारत विरोधी आतंक गतिविधियों के कारण सामने आया था । इसमें जन स्तर पर इस्लामोफोबिया के कथा को प्रकाशित कर भावनाओं को जगा कर मुख्यतः मुस्लिम युवाओं को जागृत करने की क्षमता है , जिसका चरमपंथी उद्देश्य है इसे और संगठनों से अलग बनाता है । सिमी के वास्तविक उद्देश्य को पहचानने में कानून स्थापित करने वाली संस्था को दशक का समय लग गया जो कि इसके प्रतिबंधित होने में देरी का कारण बना । जबकि प्रतिबंध के घोषणा के पहले , समाज में सिमी के विचारधारा के प्रभाव होने के सबूत देखे जा सकते हैं । इनमें से एक प्रभाव ने कुख्यात पी.एफ.आई को बनाया था । सिमी के इसके आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के कारण इस पर 2001 में प्रतिबंध लगा दिया गया था । इसके बाद पी.एफ.आई के कुछ प्रख्यात एवं बेहद प्रेरित सदस्यों ने बहुत बार बैठक की और एक अलग तरीके से सीमी को पुनर्जीवित किया और कुछ वर्षों के गहन योजना के बाद सन 2006 में पी . एफ.आई के विचार के रूप में सामने आया । संगठन अपने पूर्ण में स्वरूप सन् 2009 में आया । जब एन.डी.एफ कर्नाटक फोरम फॉर डिगनिटी कर्नाटक एवं मनधिर निधि पससाई , तमिलनाडू का विलय कर दिया गया सिमी का डी.एन.ए. पी . एफ.आई में स्पष्ट दिखाई दे रहा है । सिमी के तरह ही पी.एफ. आई साधारण मुसलमानों में नाराजगी को प्रचारित करने की रणनीति अपनाता है और उनके प्रतिक्रिया और निष्ठा को देखते हुए यह अपने कैडरों को चयनित करता है जिसे बाद में दिग्भ्रमित कर उनहें हथियार चलाकर हाथापाई और आई.ई.डी बनाने जैसे प्रशिक्षण दिया जाता है ।
इन प्रशिक्षित कैडरों का इस्तेमाल बाद में जन – मानसों में हिंसा फैलाने , आतंक फैलाने एवं समाज एवं देश में संस्थान विरोधी वातावरण बनाने में किया जाता है ।