इससे बुरा इस महिला के जीवन में शायद ही कुछ हुआ होगा। इस महिला का नाम रविता उम्र लगभग 27 वर्ष वह अपने पति रमेश गुप्ता के साथ मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के हलिया थाना क्षेत्र की ममेडी कठारि में रहा करती थी। मगर रविता जब आग की चपेट में आ गई तब भला आग उसे क्यों छोड़ती ?घटना दिनांक २८-२-१८ की बताई गयी है|आग की चपेट में आने से रविता 80 परसेंट तक जल गई थी यदि वक़्त थोड़ा और मिलता तो आग भी अपना काम पूरी ईमानदारी से करती तो रविता अस्पताल में बयान देने लायक भी ना रहती ।मगर भले ही अस्पताल में रविता ने जलने के पीछे जो भी बयान दिया हो लेकिन उसका आधार कितना सही है, मैं खासतौर पर नहीं मान पा रहा हूं |क्योंकि 80 परसेंट से ऊपर जल जाने के पश्चात किसी का मानसिक संतुलन अथवा मनोदशा क्या होगी कहना मुश्किल है ।मगर उसके बयान को यदि सही मान लिया जाए तो उसने खुद अपने सुंदर काया को आग के हवाले करने का जो फैसला लिया उसका जिम्मेदार कौन है? क्या हमारे पूरे समाज का यह दायित्व नहीं बनता कि ऐसी परिस्थितियों का आकलन करें जिससे कोई महिला अपने को जीते जी चिता पर ना रखें और ऐसी स्थिति की पुनरावृत्ति ना हो। किसी बात से नाराज होकर इतना बड़ा कदम उठाने के बाद आज अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी पड़ी रोते-रोते रविता की लाल आंखें लाल हो गई थी और आस पास खड़े लोगों से पानी की मांग कर रही थी ।उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो एक घूँट पानी के लिए जीवित है एक घूँट पानी मिल जाए और वो चैन से मर सके |उसकी मानो अंतिम इक्छा सिर्फ पानी ही हो, जिससे वो प्यासी न मरे। रोते वक्त आंसू भी नहीं निकल रहे थे, शायद शरीर का पानी जल गया था। हालंकि ऐसी हालात में डॉक्टर्स ने पानी पिने को भी मना कर रखा था| ऐसा लग रहा था जैसे जलती चिता में पानी डालकर अधजली लाश को जिंदगी देने की कोशिश की जा रही है।
अधजली लाश को जिंदगी देने की कोशिश की जा रही है-MIRZAPUR
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