शिक्षा का अधिकार कानून का हनन करने वाले को मिलनी चाहिए सजा
जो माता पिता बच्चों को नियमित विद्यालय नहीं भेज रहे हैं और उनके बच्चों की उम्र 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक है ; तो ऐसे अभिभावक के ऊपर शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मुकदमा पंजीकृत कराना चाहिए क्योंकि वह जहां अपने बच्चों के पठन पाठन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं वही राष्ट्र द्वारा बनाए कानून का उल्लंघन भी कर रहे हैं ।अक्सर देखा जा रहा है कि विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति बहुत ही कम है और प्राथमिक शिक्षा को लेकर के केंद्र सरकार राज्य सरकार यूनिसेफ सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट तथा बुद्धिजीवी वर्ग बहुत ही चिंतित हैं और हमेशा आज शिक्षक समाज अपमानित भी हो रहे हैं यदि गहराई से विचार किया जाए तो इसमें सबसे बड़ी लापरवाही स्वयं बच्चों के पेरेंट्स की समझी जा सकती है जिसका फायदा अकर्मण्य प्रवृत्ति के शिक्षक उठा रहे हैं और आज शिक्षा बाजारीकरण का स्वरूप लेती चली जा रही है जिस दिन अभिभावक अपने बच्चों के प्रति चेतन सील हो जाते हैं उसी दिन से शिक्षा का ग्राफ बहुत ही सुंदर दिखाई देने लगेगा । और जो आक्रमण प्रवृत्ति के लोग आज शिक्षा जगत को बदनाम कर रहे हैं उनके अंदर भी सुधार आ जाएगी अथवा उन्हें इस लाइन से अलग होना पड़ेगा उनके लिए स्थान जेल के तहखाने ही रहेंगे और वह समाज में कहीं भी बैठने लायक नहीं रहेंगे बच्चों का भविष्य उनके माता-पिता के हाथों में है तथा माता पिता के अच्छे विचारों व सोच में है यह खेद का विषय है कि आज 70 वर्ष आजादी होने के बावजूद भी जहां देश में शैक्षिक स्तर 70% हो रही है वहां प्राथमिक शिक्षक लापरवाही बढ़ते चले जा रहे हैं जबकि आज शिक्षकों की आय लगभग 30 वर्ष पूर्व से आकलन किया जाए तो उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही मजबूत हो चुकी है अतः यह कहा जा सकता है कि चाह कर के भी शिक्षक बच्चों को सही शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि इस वक्त विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति 25% तक है जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी बच्चों के माता-पिता ही हैं।
लेकिन वही कुछ लोगो का मानना है की भला कौन नहीं चाहेगा की मेरा बेटा स्कूल जाए ये तो वयवस्था की दुर्वय्वस्था है की पहले गरीब परिवार अपना पेट चलाये की बच्चो को स्कूल भेजे |