*कला होने के बाद भी नौकरी की चाह नहीं*
असलम खान
अहरौरा मिर्जापुर
क्षेत्र के सोनपुर निवासी अविनाश मौर्य ग्वालियर से मास्टर आफ फाइन आर्ट की पढ़ाई में टॉप करने के बाद नौकरी न करके क्षेत्र की लुप्त हो रही पत्थर नक्काशी की पुरानी संस्कृति को जीवित रखने का काम कर रहे हैं वह सोनपुर के प्लांटों के पत्थरों पर अपनी हुनर के कौशल को दिखाते हुए मशहूर गुलाबी बलुआ पत्थरों को तराश कर उसमें नक्काशी का रूप देकर पुरानी संस्कृति को जीवंत करते हुए देश एवं विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं एक मुलाकात में अविनाश ने बताया यहां की गुलाबी बलुआ पत्थर मौर्य काल से ही प्रसिद्ध है इसमें हमेशा चमक बना रहता है इसकी खूबसूरती सैकड़ों सालों तक एक जैसी बनी रहती है इन पत्थरों की एक विशेषता यह भी है कि इस पर पानी का कोई असर नहीं होता है इन पत्थरों की इन्हीं विशेषताओं की वजह से यहां के पत्थरों का प्रदेश एवं देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमेशा मांग बनी रहती है अविनाश इन दिनों जनपद चंदौली के बबुरी क्षेत्र में बनने वाले पार्क जिसमें अशोक स्तंभ लगने है वहां लगने वाली पत्थरों पर अपनी कला का हुनर दिखाते हुए जोर शोर से नक्काशी के काम को अंजाम दे रहे हैं वही जब उनसे पूछा गया कि इतनी अच्छी कला और उसमें भी आपने टॉप किया हुआ है तो आपने नौकरी क्यों नहीं की तो उनके द्वारा बताया गया कि मैं देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोकल फार वोकल नीति को अपनाते हुए अपने क्षेत्र की इस कला को प्रदेश एवं देश के विभिन्न कोनों तक पहुंचाने का कार्य करने के उद्देश्य से नौकरी की चाह नहीं रखी
पत्थरों को नक्कास व तराश कर नाम कमा रहे हैं मिर्जापुर के युवा कारीगर
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