समाचारभारतभूमि का कण-कण अनन्त गाथा से परिपूर्ण है-महाराजश्री

भारतभूमि का कण-कण अनन्त गाथा से परिपूर्ण है-महाराजश्री

मिर्जापुर। सिटी विकासखण्ड के रायपुर पोख्ता ग्रामान्तर्गत शंकराचार्य आश्रम परिसर में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह के दौरान शनिवार को पूज्यपाद अनंतश्री विभूषित काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराजश्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण मथुरा लीला संवरण कर द्वारका को अपनी राज्य की राजधानी बनाया। श्रीकृष्ण द्वारा भौमासुर की बंदीगृह में बन्द सोलह हजार कुमारियों को मुक्त कराना क्रांतिकारी प्रक्रिया है। उन्होंने स्त्रियों को मुक्त कर उनके प्रति समता का भाव प्रदर्शित किया। सुदामा-श्रीकृष्ण की कथा भगवान की अनुपम व्यावहारिक लीला है। जो जनमानस को शिक्षा देता है कि अपने मित्र, सेवक, आश्रितों समेत अन्य सभी लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिये, तभी सेवक स्वामी का सदा स्मरण रखेगा, आदर करेगा।
पूज्य महाराजश्री ने कहा कि भारत वर्ष के प्रत्येक प्रान्त में विद्वान, महात्मा सदा होते आये हैं। भारतभूमि का कण-कण अनन्त की गाथा से परिपूर्ण है, जिसका कहीं आदि अंत नहीं है ऐसा अनंत इतिहास है और वह परमब्रह्म परमात्मा के द्वारा संचालित है।
प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण व गोपियों के संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि, शरीर की मृत्यु होने पर आत्मा की उन्नति में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। यह बात बराबर ध्यान रखना है। आत्म उन्नति शरीर की मृत्यु के कारण जहाँ से छूट जायेगी अगर आप ईश्वर का चिन्तन करते हुए शरीर छोड़ देंगे, यज्ञ का संकल्प करते हुए, धर्म करते हुए, देश की रक्षा करते हुए किसी का शरीर छूट जाए याद रखना उसका अगला जन्म ईश्वर के दर्शन से उसके सानिध्य में ही शुरु हो जायेगा। बचपन से ही उस नर-नारी की ईश्वर के प्रति आस्था होगी। और अगर मास मदिरा खाकर मरोगे, शरीर छोड़ोगे तो हड्डी मास मदिरा से ही आपका जीवन प्रारम्भ होगा, उसी में जीवन बीत जाएगा, न तुम संभल सकते हो और न हम संभाल सकते हैं। जो नर-नारी अधर्म निष्ठ होकर शरीर त्याग करेगा वह अधर्म निष्ठ होकर ही पैदा होगा उसे अधर्मी बनना पड़ेगा, पापी बनना पड़ेगा। अधर्म का फल क्या है? राग, द्वेष, छल, कपट, अन्त में अशांति और दुःख। इसके विपरीत जो नर-नारी धर्म निष्ठ रहकर शरीर का परित्याग करेगा तो वह धर्मनिष्ठ होगा। शरीर छूटना तो कपड़े बदलने जैसा है। शरीर छूटने से आपकी गति में किसी प्रकार का अंतर आने वाला नहीं है।
पूज्य शंकराचार्य जी ने कहा कि, आत्मा परमात्मा से भिन्न नहीं है, इसका साक्षात्कार हो जाए तो वह नर-नारी शिव स्वरुप, कल्याणकारी हो जाएगा, शिवमय हो जायेगा, सबके लिए कल्याणकारी होगा। शव या मुर्दे से, शरीर से उसकी आसक्ति छूट जाएगी। केवल आत्मा में ही वह शेष रह जाता है, आत्मा ब्रह्म है। शास्त्र कहते हैं ऐसे महापुरुष पृथ्वी पर साक्षात शिव होते हैं, कल्याणकारी होते हैं। लोक कल्याण, विश्व कल्याण के लिए उनका जीवन होता है।
इस अवसर पर अशोक शुक्ल, हरिश्चन्द्र शुक्ल(ग्राम प्रधान), डॉ. शारदा शुक्ल, गोपाल पाण्डेय, सभापति तिवारी, राममणि सारस्वत, शिव प्रसाद पाण्डेय, सुशील शुक्ल, कैलाश दुबे, रमेश तिवारी, विनोद तिवारी एवं अन्यान्य भक्तों ने पादुका पूजन कर सत्संग लाभ प्राप्त किया।

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