VIRENDRA GUPTA -विकास खण्ड सीटी के शंकराचार्य आश्रम रायपुर पोख्ता में चल रहे पाँच दिवसीय आध्यात्मिक सत्संग के चौथे दिन काशी धर्म पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने अपने श्रीमुख से दिव्य उपदेश देते हुए बोले, अन्तः करण त्याग से ही शुद्ध होता है।तन के रोग के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए और मन के रोग के लिए श्रेष्ठ सद्गुरु के पास जाना चाहिए। स्वामीजी ने कहा मनुष्य उसे कहते है जो माता पिता पति पत्नी भाई बन्धु सगे सम्बन्धि मित्र गुरु से एक बार स्थापित कर ले उसे धर्मपूर्वक निर्वाह कर, पशुओ से भी सम्बन्ध बनाना पड़ता है ।वनस्पति पेड़ पौधो से भी सम्बन्ध बनाना पड़ता है मनुष्य वही है जो प्रेम से इन्हें अपना बना ले ।स्वामी जी ने कहा मानव शब्द के मूल में मनु की सन्तान है विचार प्रधान ज्ञान प्रधान को ही मनु कहा जाता है श्रद्धा के विषय मे बोलते हुए कहा कि श्रद्धा कई रूपो में प्रकट होती है हाथ जोड़ना ,नमस्कार करना,पूजा करना,सत्संग सुनने के लिए चल कर आना ये सब श्रद्धा को दर्शाते हैं। आँख से भी श्रद्धा प्रकट होती है वाणी से भी श्रद्धा प्रकट होती है श्रद्धा के सौ सौ रूप होते है। स्वामी जी ने कहा पत्थर ही देवता नही है माता पिता परिवार सब देवता है इनमे जिनका प्रेम नही ओ पत्थर में भगवान को नही पा सकता श्रद्धा का साथ न मिले तो ज्ञान रूखा हो जाता है रूखे ज्ञान की शास्त्र में निंदा की गई है बहुत ज्ञान हो प्रेम ही न हो तो ज्ञान रूखा है। 8 मार्च को सुबह 9 बजे से महाप्रसाद भण्डारा कार्यक्रम कथा इस मौके पर आयोजक हरिश्चन्द्र शुक्ल ग्राम प्रधान,शारदा शुक्ल ,भोलानाथ शुक्ल,अशोक शुक्ल,बंशी शुक्ल,आदि लोग काफी संख्या में उपस्थित रहे।
मनुष्य वही है जो प्रेम से अपना बना ले-स्वामी नारायणानंद
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