समाचारमिर्जापुर में मनाई गई महाराणा प्रताप की जयंती

मिर्जापुर में मनाई गई महाराणा प्रताप की जयंती

वीरेंद्र गुप्ता मिर्जापुर 94 53 82 1310,
9 मई को मिर्जापुर क्षत्रिय समाज के द्वारा मनाया गया महाराणा प्रताप जयंती। क्षत्रिय समाज के सदस्य मनीष सिंह के निवास स्थान बदली घाट शहर मिर्जापुर में इस देश के मान-सम्मान की रक्षा करने वाले इस धरती के वीर सपूत महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई और वीर सपूत महाराणा प्रताप के चित्र पर पुष्प अर्पित कर दीपक जलाया गया ।महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई सन 1540 में कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था उनके पिता का नाम राणा उदय सिंह और माता का नाम महारानी जयवंता था और उनकी सवारी के लिए घोड़ा चेतक था । दिलीप सिंह गहरवार ने कहा कि कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया महाराणा प्रताप ने ।मुगलों को कई बार युद्ध में भी हराया ।इनका जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा उदय सिंह एवं राणा जी वत कमर के घर में हुआ सन 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20000 राजपूतों के साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80 हजार की सेना का सामना किया शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर बचाया और महाराज को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला शक्ति सिंह ने अपने आंसू देकर महाराणा को बचाया ।प्रिय सचेतक की भी मृत्यु हुई यह युद्ध केवल 1 दिन चला परंतु इसमें 17000 लोग मारे गए। हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटे के लिए हुआ जिसमें मेवाड़ और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खान सूरी ने किया था।इस युद्ध में कुल 20000 महाराणा प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर के युद्ध में कुल 80000 मुगल सेना के साथ हुआ था ।महाराणा प्रताप की वीरता के साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फीट गहरे दरिया में कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी ।राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे किंतु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किए ।जंगल जंगल भटकते हुए तृणमूल व घास की रोटियां में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थिति में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया ।महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी का युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में व्यतीत हुआ उनके धैर्य और साहस का असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका ऐसे वीर सपूत को सभी देश के लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहिए और उनकी जीवनी से सीख लेना चाहिए कि कभी भी स्वाभिमान की रक्षा के लिए कभी भी घुटने नहीं टेकने चाहिए।

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