9453821310-ग्राम जगदीशपुर राधा कृष्ण मंदिर पर चल रहे 5 दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन आचार्य मानस मर्मज्ञ धनन्जय द्विवेदी ने बताया नंदी कैसे बने भगवान भोलेनाथ की सवारी, क्यों लगाई जाती है शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा
भगवान भोलेनाथ की सवारी नंदी बैल हैं | समस्त ज्योतिर्लिंग एवं शिवलिंग के समक्ष नंदी की प्रतिमा लगाना आवश्यक माना जाता है | इनके दर्शन किये बिना भगवान शिव के दर्शन को पूर्ण नहीं समझा जाता है | आखिर कैसे नंदी बने थे भोलेनाथ की सवारी, आइये जानते हैं |
प्राचीनकाल में शिलाद नाम के एक महर्षि थे जिन्होंने भोलेनाथ तपस्या कर वरदान में एक संतान की प्रार्थना की | भोलेनाथ के आशीर्वाद से शिलाद को संतान प्राप्त हुई जिसका नाम नंदी पड़ा | एक बार शिलाद के घर पर वरुण और मित्र नाम के दो तपस्वी पधारे | शिलाद ने अपने पुत्र नंदी को समस्त स्वागत एवं सत्कार की ज़िम्मेदारी सौंपी | नंदी ने पूरी लगन दोनों तपस्वियों की सेवा की
वापस लौटते समय उन्होंने शिलाद को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया किन्तु नंदी को उन सभी ने कोई आशीर्वाद नहीं दिया | शिलाद इस बात से थोड़ा चिंतित हुए और उन्होंने दोनों तपस्वियों से इसका कारण पूछा | तपस्वियों ने कहा कि हमें खेद है किन्तु आपके पुत्र नंदी अल्पायु हैं | यह सुनकर महर्षि शिलाद के पैरों तले मानों जमीन खिसक गयी हो लेकिन नंदी इस बात को सुनकर जोर जोर से हंसने लगे | नंदी ने पूरी निष्ठां से कहा कि जिन महादेव के आशीर्वाद से मैं पैदा हुआ भला उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है |
इसके पश्चात नंदी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया | भोलेनाथ ने नंदी से वरदान मांगने को कहा | नंदी ने कहा कि प्रभु मैं आपकी शरण में सदा के लिए रहना चाहता हूँ इसके अतिरिक्त मेरी कोई कामना शेष नहीं है | नंदी की इस परम श्रद्धा को देखकर भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने पुत्र नंदी को अपने गले से लगा लिया | इसके बाद महादेव ने नंदी को बैल की काय भी प्रदान की और सदा के लिए अपने साथ लेकर चले गये | भोलेनाथ ने नंदी को वरदान दिया कि बिना तुम्हारे दर्शन के मेरे दर्शन कभी पूर्ण नहीं माने जाएंगे |कथा वाचक पँडित सुधाकर मानस राकेश जी बताया रामकथा सबसे पहले भगवान शिव ने लिखा 100करोड़ पन्नो में था ये खबर जब देवताओं दैत्यों व सन्तो को लगा तो सभी रामकथा मांगने शिव जी के पास पहुँचे 33 33 करोड़ शिव ने तीनों में बांट दिया 1 अपने पास रखे उसे भी तीनो बर्दास्त नही किये मांग ही रहे थे तो शिव ने उसे अपने मुख में डाल दिया वही एक मंत्र शिव के हृदय में पड़ा रहा जब समुद्र मंथन में विष निकला तो देवताओं देत्योने नही लिये तब शिव ने उस विष का संसार को नष्ट होने से बचाने के लिये पान किया वही राम नाम मन्त्र जो शिव ने रामकथा का अपने हृदय में रखा था विष को कन्थमे ही रोक कर नष्ट किया इसलिए नीलकण्ठ कहलाये संयोजक संरक्षक जगनिवास व रामकथा कमेटीअध्यक्ष अशोक तिवारी ने बताया आज भक्तो के प्रसाद का वितरण ज्योतिषाचार्य श्रीकांत तिवारी के तरफ से किया |संयोजक साधू तिवारी प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण महासंघ फाउंडेशन व प्रबन्धक जगनिवास मिश्रा अध्यक्ष अशोक तिवारी ने तीनों आचार्यो सुधाकर मिश्रा, धनंजय द्विवेदी व रत्नाकर चौबे का माल्यार्पण किया |
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