
मीरजापुर,
दिनांक 05 अक्टूबर, 2025 को जिलाधिकारी द्वारा ग्राम नुआंव विकासखण्ड सीटी मे कृषको द्वारा रोपित ड्रैगन फ्रूट, पपीता च शिमला मिर्च आदि का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के समय सत्य प्रकाश दूबे जिनके द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती की गयी है का अवलोकन जिलाधिकारी द्वारा किया गया, कृषक द्वारा अवगत कराया गया कि अपने 2 एकड़ प्रक्षेत्र पर ड्रैगन फ्रूट की कई प्रजातियों का रोपण किया गया है जिसमें वियतनाम रेड, आस्ट्रेलियन एलो तथा थाई पिक आदि है। कृषक द्वारा बताया
गया कि वर्ष 2019-20 में ड्रैगन फ्रूट का रोपण किया गया था तथा 2022-23 से उत्पादन प्राप्त होने लगा तथा प्रति एकड़ रू0 4.00-5.00 लाख की शुद्ध आय प्राप्त हो रही है। कृषक द्वारा बताया गया कि धूप से बचाव हेतु पौधे के उपर जाली लगायी गयी है। उक्त गांव के रामजी दूबे द्वारा 2000 वर्गमीटर में पाली हाउस की स्थापना की गयी है, जिसमें कलर शिमला
मिर्च का रोपण किया गया है। उक्त पाली हाउस से 8 माह में कृषक की रू0 5.00-6.00 लाख की शुद्ध आय प्राप्त हो रही है। दूबे जी द्वारा 1 एकड़ प्रक्षेत्र में पपीते की खेती की गयी है, जिसमे कृषक द्वारा बताया गया कि अभी तक रू0 2.00 लाख का पपीता बेचा जा चुका है। ग्राम नुआंव के ही कृषक आशाराम दूबे द्वारा एक बीघे में लगाये गये ड्रैगन फ्रूट का निरीक्षण जिलाधिकारी द्वारा किया गया कृषक द्वारा बताया
गया कि ड्रैगन फ्रूट की यह टाइप सी प्रजाति है, जो हैदराबाद से मंगाई गयी है तथा इस प्रजाति के ड्रैगन फ्रूट में धूप व ठंड का असर नहीं होता है। फल ज्यादा समय तक खराब नहीं होते है तथा 15-20 दिनों तक इन फलो को स्टोर किया जा सकता है तथा कृषक द्वारा बताया गया कि फल तथा पौधे बेचकर पिछले वर्ष लगभग रू0 5.00 लाख की आमदनी की गयी थी। जिलाधिकारी द्वारा जिला उद्यान अधिकारी को यह निर्देशित किया गया कि टाइप सी
प्रजाति के पौधो को कृषको के मध्य अधिक से अधिक संख्या में लगवाये। मण्डल के ड्रैगन फ्रूट को दूसरे शहरो में पहचान देने हेतु विन्ध्य ड्रैगन फ्रूट के नाम से ब्रांडिंग भी की जा रही है। जिलाधिकारी द्वारा विकासखण्ड पटेहरा में स्थापित उद्यान विभाग की पौधशाला का भी निरीक्षण किया गया जिसमें इकाडी भोपाल एवं काजरी जोधपुर से मंगाकर प्रिक्लिप एस के पौधे लगाये गये है। यह पौधे शुष्क जलवायु के लिये उपयुक्त है, इससे पांच प्रकार के सामग्री बनते है,
जिसे 5-एफ भी कहते है
1. फुड: कैक्टस पर छोटे-छोटे पिंक कलर के फल लगते है जिसे खाया जाता है जिसमें हाई न्यूटिसियन होता है।
2. फाडर: इस पौधे में कांटे नही होते है जिससे इनको स्पाइनलेस कैक्टस भी कहा जाता है, जिसे पशुओ को
आसानी से खिलाया जाता है।
3. फ्यूबेल इस पौधे के ग्लैडियोल को काटकर बायोगैस तैयार की जाती है।
4. फर्टिलाइजर : पौधे से विभिन्न प्रकार की जैविक खादे भी तैयार की जाती है।
5. फैशन इस पौधे के क्लैडोड से जैकेट्स बनाये जाते है, जिसमें पशुओं के खाल की आवश्यकता नही होती। जिलाधिकारी महोदय द्वारा पटेहरा में ही लगे खजूर के पौधों का भी अवलोकन किया गया पौधे के बारे में जिलाधिकारी को बताया गया कि उक्त पौधे टिश्यूकल्चर खजूर के पौधे है जो बरही प्रजाति के है। इनमें 3-4 साल बाद फल आने प्रारम्भ हो जायेगे। जिलाधिकारी द्वारा डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन योजनान्तर्गत वर्ष 2020-21 में बनी मिनी सेण्टर ऑफ एक्सीलेंस का भी अवलोकन किया गया जिसमें विभिन्न तरह के रोगरहित सब्जी के पौधे तैयार किये जाते है। जिला उद्यान अधिकारी द्वारा बताया गया कि कृषकों को प्रति पौध रू0 200 की दर से बिक्री किया जाता है तथा कृषक पहले से ही बुकिंग करके पौधे ले जाते है तथा अच्छा उत्पादन प्राप्त कर रहे है। जिलाधिकारी द्वारा उद्यान विभाग के कार्यों को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की गयी तथा जिला उद्यान अधिकारी श्री मेवाराम को निर्देशित किया गया कि अधिक से अधिक कृषकों को नई तकनीक से खेती कराने हेतु प्रेरित करें।