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लकड़ी के डिपो को खोलवाने के लिये किसी राजनैतिक पार्टी के लोगों ने आवाज नही उठाया-MIRZAPUR

अहरौरा मीरजापुर नगर का एक मात्र कुटीर उधोग कास्ट कला सरकारी उपेक्षा का शिकार है लकड़ी के खिलौना बंनाने के लिये क्षेत्र के जंगलों मॆ कौरईया की लकड़ी पर्याप्त मात्रा मॆ होने के बाद भी उड्मियो को नही मिल पा रहा जिससे नगर सहित आसपास के सैकड़ो परिवारों के आजीविका का साधन यह उधौग उपेक्षा का शिकार है वर्षों से बन्द पड़े लकड़ी के डिपो को खोलवाने के लिये कभी भी किसी राजनैतिक पार्टी के लोगों ने आवाज नही उठाया न ही कोई जनप्रतिनिधि ही यहाँ के इस प्राचीन कुटीर उधौग को बचाने के लिये कोई पहल किया ।
कास्ट कला उधौग से जुड़े सरदार गुलाब सिंह ने बताया की यह क्षेत्र जंगल बाहुल्य होने के कारण यहाँ आसानी से लकड़ी मिलती थी इसलिए काफी लोग यहाँ कास्ट कला के कारोबार से जुड़े थे पहले यहाँ बन निगम का लकड़ी का गोदाम था जहाँ से लोगों को आसानी से लकड़ी मिलती थी लेकिन दस वर्ष पुर्व वह बन्द हो गया अब हम लोगों को चित्रकूट ,या अन्य स्थानों से लकड़ी लाना पड़ता है जो काफी महँगा पड़ता है ।
वर्तमान समय मॆ यहाँ कास्ट कला के व्यवसाय से जुड़े लोग लकड़ी के खिलौने ,शतरंज की गोटियां एकूप्रेसर के विभिन्न उपकरण एवं बच्चो को खेलने वाला किचन सेट इत्यादि बनाते है जिसको बेचने के लिये वाराणसी मथुरा या अन्य स्थानों पर लेकर जाना पड़ता है जहाँ लागत के अनुसार उचित मूल्य भी नही मिल पाता इसी के कारण लोग धीरे धीरे इस व्यवसाय से मुँह मोड़ते जा रहे है ।
क्षेत्र के जंगलों मॆ लकड़ी के खिलौने बंनाने के लिये प्रयुक्त होने वाली कोरिया की लकड़ी बहुतायत मात्रा मॆ पायी जाती है लेकिन इसका कटान प्रतिबंधित होने के कारण आस पास के लोग चोरी से काटकर इसकी छडी बनाकर रात के अँधेरे मॆ बेचते है इस लकड़ी को लोग चाँदी की छडी के रुप मॆ भी जानते है क्यों की यह बहुत चिकनी होती है इसके अलावा लिप्टस की लकड़ी भी भारी मात्रा मॆ खिलौना बनाने मॆ प्रयोग किया जाता है |

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