समाचारइनको सजने के लिए सरोवर का किनारा जरूरी -MIRZAPUR

इनको सजने के लिए सरोवर का किनारा जरूरी -MIRZAPUR

9453821310-एक ऐसी शादी समारोह में हम आपको ले चल रहे हैं जहां की सैकड़ों की तादाद में शादी समारोह में शामिल हुए महिला पुरुष बच्चे युवक युवती या बुजुर्ग सजने सवरने की तैयारी कर रहे हो लेकिन चेहरा देखने के लिए सजने के लिए किसी के भी पास शीशा नहीं है| शायद पूर्णतया प्राकृतिक रूप पर निर्भर ये या जाति, समुदाय सजने के लिए भी सवरने के लिए भी सरोवर के शांत होने का इंतजार करती है |जब जलाशय में मौजूद जल स्थिर हो जाता है तो उसी में अपनी छाया अपनी छवि अपनी परछाई और अपना रूप रंग देख अपने सुंदर ,ठीक व फिट होने का एहसास करती है |इस समाज की महिलाएं आज भी जलकुंड, जलाशय ,तालाब पर प्रवास ,व अन्य मांगलिक कार्यक्रम के लिए पहली पसंददीदा जगह मानती है |इन समुदाय के रहन सहन देख कर इनलोगो में आदिकाल के मानव की परछाई दिखाई देती है |सादगी का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि जिस समुदाय व्यक्ति के पास ना कोई अलमारी ना पलंग ,तकिया न कोइ दरवाजा ,कुंडी, सिटकनी न बैंक बैलेंस ना कोई पासवर्ड न कोइ डेहरी |अत्याधुनिक भोग विलास की वस्तुएं से कोसो दूर यह समुदाय आदि मानव जैसे अंदाज में अपना जीवन यापन करते हुए अपने समुदाय के लोगों की पीढ़ी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
एक तरफ जहां अरबों खरबों रुपए शादियों में खर्च करने की परंपरा बनती जा रही हो लोगों में इस बात का होड़ मचा हो कि कौन अपनी बेटी की शादी में बेटे की शादी में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इंतजाम करता है। जहां इस बात की भी होड़ मची हो की शादियों में बेश कीमती गहने बेशकीमती साड़ियां वस्त्र परिधान व लेनदेन का चलन प्रचलन अपने उच्चतम स्तर पर हो हो वहां एक ऐसी शादी की भी चर्चा करना आवश्यक प्रतीत होता है जहां किसी भी प्रकार का दिखावा ना हो, जहां सादगी की पराकाष्ठा हो दैनिक दिनचर्या की भांति नव दंपत्ति शादी के बंधन में बंध रहे हो । नवदंपति जीवन में प्रवेश करने के पहले बांस के पेड़ को साक्षी मानकर शादी करते हो ।शादी का स्थल किसी सरोवर के किनारे ,तालाब किनारे की प्राथमिकता की परंपरा रही हो, उस पर भी नजर डालना आवश्यक तब हो जाता है जब समाज में समानता ,बराबरी की बात हक के अधिकार की तमाम बातें होती हो। लेकिन इन शादियों की व्यवस्थाओं को देख कर सहज यह समझ में आ जाता है कि अभी भी आर्थिक दृष्टिकोण से इतनी विसंगतियां, असमानताएं , विवाह को देख कर सहज ही समझा जा सकता है ।उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के लोहांदी महावीर के पास स्थित जलाशय पर इकट्ठा हुई ये आदिवासी परिवार एक शादी समारोह कार्यक्रम में इस तरीके से तैयारी कर रही हैं इसका एक बानगी हमने दिखाने का प्रयास किया है ।तमाम प्राचीन कुरीतियां भी इस व्यवस्था में देखने को मिली जो इस बात का दावा कर रही है कि सरकार चाहे जो भी शादी की आयु निर्धारित करें शासन-प्रशासन बाल विवाह पर कितने भी रोक लगाने का दावा कर रही हो लेकिन यहां खुले रूप में खुले आसमान के नीचे बिना किसी तंबू तैनात धर्मशाला होटल के सामूहिक नाबालिक विवाह सार्वजनिक रूप से हो रहा है ।इसको भी देखना आवश्यक समझ में आ रहा। इन समुदाय के कुनबे की कहानी है कि दवा तेल बेचने का धंधा करने वाले यह लोग 12 साल की उम्र में ही शादी विवाह करना बेहतर मानते हैं ।कोई पक्का आशियाना ना होने का भी दर्द कुनबे के लोगों ने साझा किया । आदिवासी कुनबे के मुखिया ने बताया कि कुछ दिन पूर्व हम लोग यही मिर्जापुर की इसी धरती पर आए थे लड़का लड़की का टाका फस गया जिसको विवाह में तब्दील करने के आशय से हम सब यहां एकत्रित हुए हैं ।कुछ लोग बिहार से आए हैं कुछ लोग और अन्य जनपदों से आए हैं सात जोड़े शादी होने की बात बताते हुए अपनी आर्थिक स्थिति पर भी सरकार से कुछ चाहने की इच्छा रखते हुए तमाम व्यवस्थाओं ,अनियमितताओं और अंतरों को नजारा सार्वजनिक रूप से इस सामूहिक विवाह में देखने को मिला। बहुत कुछ संग्रह की प्रवृत्ति ना कर पाने की भी शिकायत इन लोगों के पास नहीं है ,लेकिन स्वच्छ भारत मिशन को भी बट्टा लगाने के काम इनके द्वारा किया जा रहा है इसकी भी शिकायत स्थानीय लोगों के द्वारा की गई।

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