समाचारजीव के लिए कलयुग सुनहरा अवसर होता है -काशी सिंह

जीव के लिए कलयुग सुनहरा अवसर होता है -काशी सिंह

जीव की यात्रा का अंतिम पड़ाव-
इस चराचर जगत में जो चर प्राणी स्वास लेकर जिंदा रहते हैं और जब सांस आना जाना बंद हो जाती है तो कहा जाता है कि यह मर गया ,यानी इसका जीव निकल गया ।आखिर जीव निकल कर कहां जाता है ?और जीव है क्या? इसकी क्या उपयोगिता होती है? कि इसे यात्रा पर भेजने का आदेश देने वाले भी इसके अपने यहां आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। आखिर यह जीव का किस तरह से उपयोग करते हैं ।यह समझने की चीज है ,जीव एक प्रचंड शक्तिशाली शक्ति है जो परिमार्जन के लिए यात्रा पर भेजा गया है इस तरह से यह एक यात्री है ।यह अनेक मंडलों में भेजा जाता है और जो जीव परिमार्जित शुद्ध पाप रहित होकर पर ब्रह्म के पास पहुंचते हैं उन्हें यह पर ब्रह्म अपने में समाहित कर के दिव्य शक्ति के रूप में उद्धृत कर देते हैं ।जिससे यह दिव्य लोकों में स्थित कर देते हैं और इसी दिव्य शक्तियों की सहायता से पूरे ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। जब जीव परब्रह्म में समाहित होता है इसी को जीव का मोक्ष कहा जाता है। फिर कभी भी यह आवागमन की यात्रा में नहीं फसता ना ही यह कभी नष्ट ही होता है और सदैव आनंदित और प्रफुल्लित रहता है ।यही तो जीव की परम गति है। परिमार्जन के लिए इसे प्रथम मंडल में सर्वप्रथम भेजा जाता है और यह अनेक योनियों से गुजरते हुए यह जीव बहुत शक्तिशाली संपन्न होता है तब इसे मानव योनियों में भेजा जाता है ।जहां यह क्रियाओं के द्वारा और विवेक के द्वारा शक्ति संपन्न होकर अग्रसारित होता है। जो भी जीव मानव योनि में आकर विष्णु माया में लिप्त हो जाते हैं और सब भूलकर भौतिकता में लिप्त हो जाते हैं और सब कुछ यहीं प्राप्त कर लेना चाहते हैं ऐसे जीवो की बात ही कुछ और है क्योंकि जब जीव मानव योनि में आता है तब इसे भूतकाल की सब यादें विस्मृत कर दी जाती हैं और जीव को एक तरफ विष्णु माया और दूसरी तरफ शिव का तमोगुण इसे तिलस्म में बांध देता है ।इसी तिलस्म को तोड़ कर अपने पथ पर अग्रसर होना ही इसकी परीक्षा है ।आत्मा के रूप में स्वयं ब्रह्मा इस के कार्यकलापों को देखते हैं और उपयुक्त पाने पर दूसरे युगों के लिए अग्रसारित करते हैं। यह प्रक्रिया हर युगों में चलती रहती है ।जीव की दृष्टि से सब युगों से अच्छा और पथ प्रशस्त करने वाला युग कलयुग होता है ।क्योंकि ब्रह्म कलियुग में ही जीवो का चयन करके दूसरे युगों के लिए चिन्हित करते हैं।त्रिदेव भी अपने गुणों के आधार पर डोर लगाकर इसका संचालन करते हैं क्योंकि जीव जब मानव योनि में आता है तो सब सतर्क हो जाते हैं क्योंकि दूसरी योनियों में आत्मा नहीं प्रदान की जाती ।आत्मा में 5 स्थान होते हैं दो स्थान गुण रूप से आत्मा का संचालन करते हैं और 3 स्थानों को जीव को पूर्ण करना होता है ।यह पांचों स्थान तत्व के रूप में पूर्ण किए जाते हैं। जिससे आत्मा पंचतत्व में बदल जाती है ।आत्मा में एक दूसरे का वेधन करके आत्मा को पूर्ण किया जाता है ।तब आत्मा ब्रह्म के रूप में परिवर्तित हो जाती है। तब जीव आत्मा में विलीन हो जाता है और आत्मा जीव को लेकर विष्णु मार्ग से दिव्य लोकों में प्रविष्ट कर जाती है और वेध करते हुए परब्रह्म तक पहुंचती है और जीव के साथ परब्रह्म में जो परम तेज जाता है ऐसा तेज कि औरों की बात तो क्या सामने पड़ने पर त्रिदेवों की आंखें उस तेज सामने बंद हो जाती हैं।ब्रम्ह रूपी आत्मा जीव को लेकर परब्रह्म में समाहित हो जाती है ।ब्रह्म परब्रह्म में विलीन हो जाते हैं और जीव भी परब्रह्म में विलीन हो जाता है। इसके उपरांत परब्रह्म जीव को दिव्य शक्ति के रूप में दिव्य लोकों में अवस्थित कर देते हैं। इन्हीं दिव्य शक्तियों की सहायता से यह ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। यह जीव का मोक्ष ही है जीव आवागमन के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है ।यह तत्व मार्ग के द्वारा संभव है जो सिद्धांतों के आधार पर और द्वेत अद्वैत आधार पर चलता है।
अतः जीवों से प्रार्थना करता हूं कि विष्णु माया से परहेज कर के अपने गंतव्य की तरफ बढ़े यह सब तभी संभव है जब जीव प्रथम मंडल में मानव तन में आता है बिना प्रथम मंडल के पृथ्वी लोक में मानव तन में आए बिना कहीं भी किसी भी मंडल में संभव नहीं है ।जीव के लिए कलयुग सुनहरा अवसर होता है इसी समय ब्रह्म उन जीवों का चयन करते हैं जिनको स्वर्ग या मोक्ष की तरफ अग्रसर करना होता है। इस मिले अवसर को चूके नहीं।

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