समाचारडा. जायसवाल  की 141वीं जयंती पर उनकी स्मृति पर वृक्षारोपण किया गया

डा. जायसवाल  की 141वीं जयंती पर उनकी स्मृति पर वृक्षारोपण किया गया


मिर्जा़पुर। डा. काशी प्रसाद जायसवाल विद्वत परिषद के तत्वाधान में बसंत इंटर कालेज के परिसर में डा. जायसवाल की 141वीं जयंती पर उनकी स्मृति पर वृक्षारोपण किया गया। इस दौरान एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि परिषद की अध्यक्ष डा. रीता जायसवाल ने कहा कि महान विचारक-लेखक और अर्थशास्त्री डाक्टर काशीप्रसाद का जन्म 27 नवम्बर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। डा. काशी प्रसाद जायसवाल मिर्जापुर के प्रसिद्ध रईस साहु महादेव प्रसाद जायसवाल के पुत्र थे.उनके जीवन के कई आयाम हैं और कई क्षेत्रों में उनका असर रहा है.
अपने छोटे से जीवनकाल में डा0 काशीप्रसाद जायसवाल ने बड़ी ऊंचाई हासिल की. उनके जीवनदर्शन को लेकर उनके शिष्यों की न केवल अनेक संकलित रचनाएं प्रकाशित हुईं, बल्कि उन पर न जाने कितने शोध-प्रबंध और किताबें और लेख लिखे गए. अनगिनत सभाएं, संगोष्ठी, कार्यक्रम बदस्तूर जारी हैं. वे युग-निर्माताओं में से एक थे और अपने कृतित्व के आधार पर आज भी बेजोड़ हैं.तमाम विद्याओ में निपुण डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल सामाजिक रूप से हिन्दू-मुस्लिम-एकता को जरूरी समझते थे। उनका मत था कि ताली एक हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथ से बजती है। क्योंकि अधिकांश हिन्दू साहित्यकार अपने उपन्यासों में मुसलमानों को अत्याचारी और हिन्दुओं को सदाचारी के रूप में चित्रित कर रहे थे, इसलिए वे इस कृत्य को राष्ट्रीय एकता में बाधक के रूप में देख रहे थे। वे कई भाषाओं के जानकार थे। वह संस्कृत, हिंदी, इंग्लिश, चीनी, फ्रेंच, जर्मन और बांग्ला भाषा पर पूरा कमांड रखते थेे. लेकिन वे हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखते थे. अंग्रेजी बाह्य जगत के पाठकों और प्रोफेशनल इतिहासकारों के लिए तथा हिंदी,स्थानीय पाठक और साहित्यकारों के लिए काशीप्रसाद ने लेखन से लेकर संस्थाओं के निर्माण में कई कीर्तिमान स्थापित किए. संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए समाजसेवी अरूण कुमार मिश्र ने कहा कि उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति पर तकरीबन दो सौ मौलिक लेख लिखे, जो प्रदीप, सरस्वती, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, जर्नल ऑफ़ बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, इंडियन एंटीक्वेरी, द मॉडर्न रिव्यू, एपिग्रफिया इंडिका, जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, एनाल्स ऑफ़ भंडारकर (ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट), जर्नल ऑफ़ द इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट, द जैन एंटीक्वेरी इत्यादि में प्रकाशित हैं.भारतीय दर्शन, इतिहास, भाषा-साहित्य, सभ्यता-संस्कृति व धर्म के गौरवशाली अतीत को काशीप्रसाद ने जिस प्रखरता से उभारा है, उस तरह की प्रखरता अभी तककोई दूसरा साहित्यकार या इतिहासकार नहीं उजागर कर पाया है।भारत सरकार ने सन् 1981 में कुछ विशिष्ट महापुरूषों के सम्मान में विशेष डाक टिकटों को जारी करने का निर्णय लिया है।उन महापुरूषों में एक नाम प्रसिद्ध इतिहासकार डा.काशी प्रसाद जायसवाल का भी था.
संचालन कर रहे महामंत्री शैलेंद्र अग्रहरि ने कहा कि डा.काशी प्रसाद जायसवाल विद्वत परिषद
की मांग है कि डा. काशी प्रसाद जी की मूर्ती नवीन संसद के सेंट्रल हाल में लगायी जाय जिससे देश के भविष्य को उनकी पवित्र स्मृतियों से उनके राष्ट्रवादी विचारों के योगदान के प्रति उच्चतर जानकारी मिलती रहे। उनकी जन्म स्थली मिर्जा़पुर शहर में भी किसी प्रमुख चौराहे को उनके नाम पर जाना जाय और वहां उनकी मूर्ती भी स्थापित हो। घंटाघर में प्रस्तावित संग्रहालय भी उनके नाम पर हो।
कार्यक्रम में प्रधानाचार्य लालजी शाष्त्री, उमा जायसवाल, अमित श्रीनेत, रविंद्र जायसवाल, अतिन गुप्ता, निखिल गुप्ता, गुड्डू श्रीवास्तव, रेखा चौरसिया, अभिषेक केशरी, रियाज अहमद, मुकेश अग्रहरि, गणेश अग्रहरि, निर्मला, ममता आदि रहे।

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